कुँवर नारायण की कविता संग्रह: परिवेश : हम-तुम - शक

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Parivesh : Hum-Tum - Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: परिवेश : हम-तुम - शक

शक
रात जैसे दर्पणों की गली हो,
और तुम एक चाँद बन कर निकली हो

हर चीज तुम्हारे रूप का आईना :
हर ख़्वाब तुम्हारे प्यार से सना,

तुम्हारे लिए मेरा मन ललचता है,
तुम्हारे बिना कुछ नहीं जंचता है।

लेकिन, कभी-कभी
लगा है ऐसा भी-

वह नज़र-जो खूब पिये थी-
वह हँसी-क्या सबके लिए थी?

तुम्हारे हँसने पर फूल-से झड़ते हैं,
बाद में याद में काँटे-से गड़ते हैं!

वह गुलाबी प्यार-अच्छा तो है,
लेकिन शक़ होता है-सच्चा तो है?

कहीं तुम ख़राब न निकलो
मामूली शराब न निकलो

जिसकी अदा दूसरी हो,
जिसका असर ऊपरी हो,

जो एक बात में छल जाए,
जो एक रात में ढल जाए,

और तब हर एक चीज़ मुझ पर हँसे?
यही रात नागिन-सी रह-रह कर डसे।
 

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