कुँवर नारायण की कविता संग्रह: परिवेश : हम-तुम - तुमने देखा

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Parivesh : Hum-Tum - Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: परिवेश : हम-तुम - तुमने देखा

तुमने देखा
तुमने देखा,
कि हंसती बहारों ने?
तुमने देखा,
कि लाखों सितारों ने?

कि जैसे सुबह
धूप का एक सुनहरा बादल छा जाए,
और अनायास
दुनिया की हर चीज भा जाए :
कि जैसे सफ़ेद और लाल गुलाबों का
एक शरारती गुच्छा
चुपके से खिड़की के अन्दर झाँके
और फिर हवा से खेलने लग जाय
शरमा के
मगर बुलाने पर
एक भीनी-सी नाज़ुक खुशबू
पास खड़ी हो जाय आ के।

तुमने कुछ कहा,
कि जाग रही चिड़ियों ने?
तुमने कुछ कहा,
कि गीत की लड़ियों ने
तुमने सिर्फ पूछा था-

“तुम कैसे हो?”
लगा यह उलाहना था-
"तुम बड़े वैसे हो!...”
मैंने चाहा
तुमसे भी अधिक सुन्दर कुछ कहूँ,
उस विरल क्षण की अद्वितीय व्याख्या में
सदियों तक रहूँ,
लेकिन अव्यक्त
लिये मीठा-सा दर्द,
बिखर गए इधर-उधर
मोहताज शब्द....।
 

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