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महफिल-ए-शमा - अशोक गौड़ अकेला (पार्ट १ )
Mahfil-A-Shama - Ashok Gaur Akela (Part 1)
हो रही बेताब नज़रें.......... "महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला
हो रहीं बेताब नज़रें
उनके नज़र के सामने
है हला-हल आज
अपने नज़र के सामने
हो रहीं बेताब नज़रें.
घायल हुए है नज़र से
खंजर नहीं है सामने
आये कैसे, जाये कैसे कोई
उनके नज़र के सामने
हो रहीं बेताब नज़रे..
आबरू अब तक बची है
उनके नज़र के सामने
नज़रों से नज़रें, मिले न
जब हों नज़र के सामने
हो रहीं बेताब नज़रें.
है बड़ा खतरा कि जब
वह हों नज़र के सामने
गश खाकर गिर चुके
कितने नज़र के सामने
हो रही बेताब
नज़रों से पी मदहोश हूँ
उनकी नज़र के सामने
कातिल है तेरी नज़र
रह सकता नहीं... नज़र के सामने'
हो रही बेताब..
हो रहा बेकाबू जियर
उनके नज़र के सामने
प्यार करता हूँ बखूबी
कह सकता नहीं... नज़र के सामने
दिल मेरा लूट कर.... "महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला
दिल मेरा लूट कर
पैगाम मुझको दे गये
करता हूँ मोहब्बत तुझसे
हैरान मुझको कर गये
दिल मेरा लूट...
नज़रों के तीर से दिल को
घायल कर गये
मरहम किसी के हाथ से
फिर वह भिजवा गये
दिल मेरा लूट.
दिल पर निशाना आज
वह फिर कर गये
दौरे उलफत में तबाही
दिल का हम करते गये
दिल मेरा लूट..
हाल है अब यह तबाही
नींद है आती नहीं
बेचैन हूँ फिर देखने की
दीदार अब होता नहीं
दिल मेरा लूट..
डरता हूँ रूसवाये मोहब्बत
जिन्दगी के खेल में
दुनियाँ में होगी जलालत
इस मोहब्बत के खेल में
दिल मेरा लूट..
गर्दिशे उम्मीद में
जीता रहा हूँ आज तक
फूल अब कैसे खिलेगा
"अकेला" आशियाने में
जुबाँ पर जो आकर रुक गयी..... "महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला
जुबाँ पर आकर रूक गयी है
वह मेरे दिल में समायी हुई है
चाहो न मुझको तो कुछ भी नहीं
अपनी चाहत से पूछें तो हो यकीं
मिलती नहीं है नज़र से नजर
शर्म से झुक जाती क्यो नजर
दिल क्यों धड़कता है रह-रह कर
ज़रा खुद से पूछो, तो हो यकीं
कुछ भी कहो तुम अपने लिए
लगती हो तुम मुझको कितनी हँसी
चंदा भी शरमाये जब देखे तुझे
चांदनी भी लगे ना तुझसी हँसी
जुबां पर जो आकर
यह रात और तन्हाई.... "महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला
यह रात और ये तन्हाई
कब तक तुझे रास आयेगी
मुझे तो तेरी
जुदाई का गम खा जायेगी
यह रात और..
फूलों के शबनम
डसते है मुझको
जब तू न होती
आशमाँ पर तारों का शोर भारी है
मेरे दिल में हलचल बेकरारी है
अब तक मैंने, जिन्दगी में चैन नहीं पायी है
मैं कैसे कह दूँ तू हजयी है
यह रात और.
तू आये तो बहार आ जाये
जिन्दगी में, उम्र भर का
करार आ जाये
गम नहीं करता मैं
अपने हाल-ए-करम पर
पर तेरा क्या होगा
डरता हूँ, यह सोच-सोचकर
यह रात और…
जमाने ........ "महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला
यकीं आता नहीं मुझकोअपनी ही वफ़ाओं पर
ज़माने ने लूटा है
मुझको मेरी ही राहों पर
यकीं आता..
करूँ किससे शिकायत मैं
अपनों ने अपनों को लूटा है।
पराये तो पराये है
किससे कहूँ तू झूठा है
यकीं आता..
लगी कब आग महलों में
लपटों ने मेरी झोपड़ी जलाई है।
किनारे पर था मैं खड़ा
कस्ती ने मेरी हस्ती डुबाई है
यकीं आता.
हम लुटे तो क्या
घटाओं ने सूरज को घेरा है
जमाने की परवाह
हम भी क्यों करें 'अकेला'
जब तेरी चाहत से
उजाला है
यकीं आता..
इन्साफ करेगी क्या.. "महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला
जो प्यार करे वह जाने हैजो वफ़ा करे वह माने हैं।
प्यार ही जीना जीवन है।
जो जफा करे वह क्या जाने
कैसे कोई प्यार करे
लैला मजनूँ को याद करे
दुनियाँ' ने कब यह सराहा है
केवल पत्थर से मारा है।
शमा सदा ही जलती है
जग को रोशन करती है
मुर्दा दिल क्या ख़ाक जियें
जो जीते जी मर जाते हैं
इन्साफ करेगी क्या दुनियाँ
हम इन्साफ पर चलते हैं
यह डगर हमारा सच्चा है
हम राह को रोशन करते है
हर डगर पर काँटे होते हैं
हर डगर पर पत्थर मिलते हैं
चलने वाले चल-चलकर ही
अपनी मंजिल को पाते हैं
दिखती है जंगल में आग........ "महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला
दिखती है जंगल में आग... . कब किसेलगती है जब-२ आग... मछली जल-२ मरे
मोम में भर दी किसी ने
आग की दरिया
जलती है पिघल- पिघल
मोम की गुड़िया
दिखती है आग..
बादल जो बरसे
हरियाली बढ़ाने
वहीं क्यों आज चली
मेरी हस्ती को मिटाने
दिखती है आग..
हवा ने मलय के गंध को
रवानी दी
उसी ने आज मेरे क्यों
घर उजाड़े
दिखती है आग..
समुन्दर में भरे मोती
पर पिये वह क्यों
खारे-खारे अपने ही पानी
पढ़ रहा हूँ... .. जिन्दगी की
यह कहानी
दिखती है आग....
चाँदनी ने चाँद से... "महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला
ओठों पर जो आये गीत-गज़लअकेले में हम गुनगुनाया करेंगे
तनहाँ है हम भी यादों में तेरी
तेरी चाहत में शमा जलाते रहेंगे
किस्मत में है गर तेरी मुहब्बत
नज़रों से पी मुस्कराया करेंगे
फ़साने हमारे तुम्हारे हुए तो
जमाने में रूसवा होने न देंगे
चाँदनी से चंदा ने शिकवा किया है
जैसा कि मैने तुझसे किया है
सितारों से आगे दुनिया है मेरी
मुहब्बता जवाँ है, उससे भी आगे
अफवाह फैलाई है.. "महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला
अफवाह फैलाई हैं किसी नेप्यार तू मुझसे करे
इशारा मेरे लिए
बेचैनियाँ मुबारक हो
मुझे आज शाम की
जलते हैं चिराग
अब तेरे नाम की
यह क्या कम है
नज़रे झुकी है तेरी
मयखाने पर है पहरा
जवाँ दिल की धड़कन में
कौन है तेरा
नज़रे उठाकर देख लो
चेहरा तो देख लूँ
अपने साँसो की हलचल
को कुछ पनाह दूँ
बेचैन हूँ बहुत
क्यों है दूरियाँ बहुत
जपता हूँ मैं माला
बस तेरे नाम की
बेचैनियां मुबारक हो मुझे
आज शाम की
बीतेगी रात यूँ ही
मैं जानता अभी
जाता हूँ जब भी मंदिर
बजती है घंटियाँ
चढ़ाता हूँ फूल वहाँ
बस तेरे नाम की
तू खूबसूरत गज़ल है.. "महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला
तूही मेरे दिल का पहला अरमान है।कैसे कह दूँ मैं तुझसे, मुझपर खुदा मेहरवान है
तू खूबसूरत गज़ल है।
किसी शायर की निगाहों में
मैं पशेमान हूँ तेरी
प्यारी-प्यारी बातों से
आकाश में चंदा खिला
बहार बागों में हुई
दिल में प्रेमियों के
कैसी हलचल यह हुई
खोया- २ चंदा फिरे
चाँदनी रातों में
रह-रह के फूल खिले
दिल के मेरे बागों में
बहार आई है आज
हर दिशाओं में
बहकी बहकी है शमा
किसी के ख्यालों में
रूप तेरी चाँदनी
और फूलों का शबाब है
बहकी है बगिया-बगिया
तेरा जिस्म ही गुलाब है
मुझसे कुछ तुम भी सीखो
प्यार की मीठी बातें
दीवानों से मत करना
नफरत की बातें
दो नयनों के दीप जलाकर...... "महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला
दो नयनों के दीप जलाकरइन्तजार मुझे पल-पल करना
आशाओं की किरण जगी है
याद मुझे तुम करते रहना
मधुर क्षणों को भूलूँ कैसे
स्वाँसों में मेरे बसे ही रहना
अपनों की जब याद सताये
याद मुझे तुम करते रहना
प्यार की दरिया में है रवानी
प्यार की कस्ती खेती रहना
मधुर मिलन की चाह है मेरी
जुदाई का गम भी इसमें है सहना
सुन ले जरा........... "महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला
जालिम न बनो, जाने मन जाने जाँआजा. . रात सुहानी है
तन्हा हूँ. .चली आ रात सुहानी है
तन्हा हूँ... चली आ, चली आ, चली आ
मौसम... .. आशिकाना है
तेरे मेरे मिलने का अच्छा बहाना है
चली आ...
कल-कल नदिया बहती
किनारे से कुछ कहती .
सुन ले जरा.. कान लगा
तन्हा हूँ चली आ! चलीआ !! चली आ !!!
तारों की झिलमिल रोशनी
मस्त बहारों का शमां
ऐसे में क्यों न हो।
दिलजवां, दिलजवां, दिलजवां
तुमने पुकारा मुझे
मैनें पुकारा तुझे
दिल की धड़कन मेरी
कहती यहीं
तन्हां हूँ... चली आ, चली आ, चली आ
बार-बार तेरे तन की खुशबू
आकर लौट जाती है
ज़ालिम न बनो जाने मन
आजा रूत सुहानी है
तन्हां हूँ... चली आ, चली आ, चली आ.....
समय का इन्तजार है...... "महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला
पतझड़ हुआ तो क्या हुआमौसम कोई तो है
सावन की फुहार आने का
इशारा इधर तो है
पतझड़ हुआ तो क्या...
समय का इन्तजार है
कलियाँ है बाग में
खिलेंगे फूल चमन के
खुशबू के साथ में
पतझड़ हुआ तो क्या......
दिल में प्रेम है तो
इज़हार हम करेंगे
दिल है अपने पास तो
दिलदार भी मिलेंगे
पतझड़ हुआ तो क्या.
इशारा जो किया मुझको
नज़रों से आपने
मंजिल की राह मिल गई
एक मुस्कान से तेरे
पतझड़ हुआ तो क्या.
एक जाम तेरे नाम हो जाये..... "महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला
आज एक जाम'तेरे नाम हो जाये
क्या पता जिन्दगी का
कब तमाम हो जाये
किसी ने दर्द दिया
सीने में छुपाने के लिए.
"क्या पता वह
किस हद तक हलाक हो जाये
आज एक ज़ाम
जहर पीता नहीं
कोई अपने लिए
खुद पी लूँ तो शायद
तुझको तो यकीन हो जाये
आज एक जाम
बेहतर हो कि, जीते जी, मरता ही रहूँ
तेरे नज़रों के जाम, निश दिन पीता ही रहूँ
शायद नजरों से तेरे इत्तिफाक हो जाये
आज एक ज़ाम तेरे नाम हो जाये
बुत खाने में तेरा ही
बुत बना करता हूँ पूजा
शायद तेरे दिल को
मेरे प्यार का यकीं हो जाये
क्या पता "अकेला"
कब तमाम हो जाये
आज एक जाम
तेरे नाम हो जाये
अफसाने मेरे..... "महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला
अफ़साने मेरे लुट गएकफन के नाम पर
तनहा रह गया हूँ
तेरी जफ़ा के नाम पर
दफन हो जायेंगे
सिलसिले प्यार के
यदि तू न मिली तो
तेरे कब्र के तले
फूलों को मसलना
आदत नहीं मेरी
खुद लुट गया तो क्या
मरना तो है कभी
साँसे है अभी बाकी
उम्मीद को लिए
जिन्दगी जिन्दादिली है
जीने के लिए
रूसवा न करूँ किसी को
मुहब्बत के गिफत में
बुलबुल हूँ मैं चमन का
सैयाद तो नहीं
कफ़न मेरी तैयार है
मरने के पहले
जी रहा हूँ केवल
तेरे दीदार के लिए
चन्द लम्हें बचे हैं
तेरी आरजू के लिए
मिलना है तो मिल ले
एक बार नकाब उठा के
जुस्तजू तेरी ही करता...... "महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला
जुस्तजू तेरी ही करतामैं खुदा के सामने
हौसला कुछ तो बढ़ाओ
आकर नज़र के सामने
हाले दिल अपना सुनाओ
शिकवे गिले जाते रहें
इस छोटी सी जिन्दगी के
हौसले बढ़ते रहें
प्यार की तुम ही दवा हो
जिन्दगी कटती रहे
हर डगर तुम साथ दो तो
मंजिलें मिलती रहें
सपनों में नयनों के गीत लिखे तेरे.. "महफिल-ए-शमा" - अशोक गौड़ अकेला
सपनों में नयनों के गीत लिखे तेरेवही बन गए दिल की धड़कन अब मेरे
तेरा थोड़ा सा प्यार
थोड़ी सी खुमारी
दे गया करार मुझे
आज रात सारी
सपानों में.
सपनों में नयनों के
गीत लिखे तेरे
अब सब सच लगते है
दिन में भी मेरे
मौसम ने खुशबू
चहूँ ओर फैलाये
तेरा चाँदी सा बदन
दीवानों को भाये
सपनों में.
रंग में तरंग तेरे
चंचल चितवन से
माँग को भर ली
गगन ने सिंदूर से
सर्व-सर्द मौसम में
नदिया किनारे
धुवाँ धुवाँ सा उठता है
सब कोई जाने
ऐसे में तस्वीर तेरी
धुँधली दिखती है
बेचैन हो मेरा जिगर
रात भर करवटें बदलती है
सपनों में नयनों के
गीत लिखे तेरे
अब सब सच लगते है
यह अफ़साने मेरे
(getButton) #text=(Jane Mane Kavi) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(Hindi Kavita) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(Ashok Gaur Akela) #icon=(link) #color=(#2339bd)(getButton) #text=("महफिल-ए-शमा" Part 2) #icon=(link) #color=(#2339bd)