कुँवर नारायण की कविता संग्रह: तीसरा सप्तक - गहरा स्वप्न

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Teesra Saptak : Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: तीसरा सप्तक - गहरा स्वप्न

गहरा स्वप्न
सत्य से कहीं अधिक स्वप्न वह गहरा था
प्राण जिन प्रपंचों में एक नींद ठहरा था :

भम्नावशेषों की दुर्व्यस्थ छायाएँ
झुल्सी हुई लपटों-सी ईर्ष्यालु,
जीवन के शुद्ध आकर्षण पर गुदी हुई...

काल की समस्त माँग
बूढ़ी दुनिया अपंग :

आदि से अन्त तक,
अन्त से अनन्त तक,
देखा पर्यनन्त तक,
मौन हो बोल कर
जीवन के पतों की
कई तहें खोल कर...

पहलदार सत्यों का छाया-तन इकहरा था,
जीवन का मूलमन्त्र सपनों पर ठहरा था ।
 

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