कुँवर नारायण की कविता संग्रह: तीसरा सप्तक - दर्पण

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Teesra Saptak : Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: तीसरा सप्तक - दर्पण

दर्पण
वस्तु का दर्पण उधर सुनसान,
जो अपनों बिना वीरान,

इधर धूसर बुद्धि जो अति
ज़िन्दगी के प्रति
उठाती स्वप्न की प्रतिध्वनि :

कुछ अवनि के अंक से आश्वस्त,
कुछ ऊँचाइयों से पस्त,

दृष्टियों में जन्म लेता प्यार :
दर्पण की सतह पर तैर आये
जिस तरह कोई निजीपन ।
 

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