कुँवर नारायण की कविता संग्रह: अपने सामने - विभक्त व्यक्तित्व ?

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Apne Saamne - Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: अपने सामने - विभक्त व्यक्तित्व ?

विभक्त व्यक्तित्व ?
(मुक्तिबोध के निधन पर)

वह थक कर बैठ गया जिस जगह
वह न पहली, न अन्तिम,
न नीचे, न ऊपर,
न यहाँ, न वहाँ...

कभी लगता-एक कदम आगे सफलता।
कभी लगता-पाँवों के आसपास जल भरता।

सोचता हूँ उससे विदा ले लूँ
वह जो बुरा-सा चिन्तामग्न हिलता न डुलता।
वह शायद अन्य है क्योंकि अन्यतम है।

वैसे जीना किस जीने से कम है
जबकि वह कहीं से भी अपने को लौटा ले सकता था
शिखर से साधारण तक,
शब्दों के अर्थजाल से केवल उनके उच्चारण तक।

सिद्धि के रास्ते जब दुनिया घटती
और व्यक्ति बढ़ता है,
कितनी अजीब तरह
अपने-आपसे अलग होना पड़ता है।
 

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