कुँवर नारायण की कविता संग्रह: अपने सामने - तुम मेरे हर तरफ़

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Apne Saamne - Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: अपने सामने - तुम मेरे हर तरफ़

तुम मेरे हर तरफ़
और तुम मेरे हर तरफ़
हर वक़्त
इतनी मौजूद :
मेरी दुनिया में
तुम्हारा बराबर आना-जाना
फिर भी ठीक से पहचान में न आना
कि कह सकूं
देखो, यह रही मेरी पहचान
मेरी अपनी बिल्कुल अपनी
सबसे पहलेवाली
या सबसे बादवाली
किसी भी चीज़ की तरह
बिल्कुल स्पष्ट और निश्चित।
अब उसे चित्रित करते मेरी उँगलियों के बीच से
निचुड़कर बह जाते दृश्यों के रंग,
लोगों और चीज़ों के वर्णन
भाषा के बीच की खाली जगहों में गिर जाते।
ठहरे पानी के गहरे हुबाब में
एक परछाईं एक परत और सिकुड़ती।
शाम के अंधेरे ठण्डे हाथ।
मेरे कन्धों पर बर्फ़ की तरह ठण्डे हाथ
मुझे महसूस करते हैं।
 

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