कुँवर नारायण की कविता संग्रह: अपने सामने - अपने बजाय

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Apne Saamne - Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: अपने सामने - अपने बजाय

अपने बजाय
रफ़्तार से जीते
दशकों की लीलाप्रद दूरी को लांघते हुए : या
एक ही कमरे में उड़ते-टूटते लथपथ
दीवारों के बीच
अपने को रोककर सोचता जब

तेज़ से तेज़तर के बीच समय में
किसी दुनियादार आदमी की दुनिया से
हटाकर ध्यान
किसी ध्यान देनेवाली बात को,
तब ज़रूरी लगता है ज़िन्दा रखना
उस नैतिक अकेलेपन को
जिसमें बन्द होकर
प्रार्थना की जाती है
या अपने से सच कहा जाता है
अपने से भागते रहने के बजाय।
मैं जानता हूँ किसी को कानोंकान खबर
न होगी
यदि टूट जाने दूं उस नाजुक रिश्ते को
जिसने मुझे मेरी ही गवाही से बाँध रखा है,
और किसी बातूनी मौके का फ़ायदा उठाकर
उस बहस में लग जाऊँ
जिसमें व्यक्ति अपनी सारी जिम्मेदारियों से छूटकर
अपना वकील बन जाता है।
 

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