कुँवर नारायण की कविता संग्रह: कोई दूसरा नहीं - सुनयना

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Apne Saamne - Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: कोई दूसरा नहीं - सुनयना

सुनयना
(1)
कई बार ऐसा हुआ
कि वैसा नहीं हुआ
जैसा होना चाहिए था...

कैसा होना चाहिए था
फूल-सी सुनयना की आँखों में
अपने प्रेम में विश्वास का रंग?

वैसा नहीं मिला मौसम
जिसमें खिलते हैं फूल
अपनी समस्तता में
निश्छल और चंचल एक साथ...

(2)

कुछ लोग उसे देखने आये
देखने की तारीख़ से पहले,
ख़रीद की तर्ज़ पर पक्की कर गये उसे
पकने की तारीख़ से पहले।

(3)

तूफानों से लड़ती
एक अकेली पत्ती
दरख़्त की उँगली पकड़े.

उसके विश्वास का रंग

अब वैसा था जैसा होता है
डाल से तोड़े हुए फूलों का रंग।

(4)

...पिछली बार अयोध्या में
कनकभवन की सीढ़ियों से उतरते देखा उसे-
भस्म अंगों में वैसा न था यौवन
जैसा होना चाहिए था
ऐसे भरे फागुन में टेसू का रंग!

अब वह
सूर्यास्त समय...
जैसे नदी पार के घिरते अंधेरे में
घुलता चला जाय एक बजरे का रंग
ऐसा था ऐसे समय
हाथों में फूल लिये
उसका चुपचाप कहीं
ओझल हो जाने का ढंग।
 

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