कुँवर नारायण की कविता संग्रह: इन दिनों - कुतुब का परिसर

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In Dino - Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: इन दिनों - कुतुब का परिसर

कुतुब का परिसर
वैसे तो बिल्कुल स्पष्ट और क्रमानुसार थीं
सारी बातें मेरे दिमाग़ में
कि हर शहर की होती हैं

अपनी प्राचीनताएँ और आधुनिकताएँ
अपने चौक-चौराहे आमोख़ास सड़कें
लड़कियाँ और लड़के
नदी पुल बाग़ बगीचे
दिक़्क़तें और सुविधाएँ
सामान्यताएँ और विशेषताएँ
उसके क़िले महल
अजायबधर कलाभवन प्रेक्षालय
उसके लेखकों कलाकारों महानायकों
और शहीदों की अमरकथाएँ
उनके महाकाव्य, फ़ौजें, जहाजी और हवाई बेड़े।

बिल्कुल साफ़ था मेरे दिमाग़ में
हर शहर के भूगोल और इतिहास का नक़्शा

कि एक दिन
लखनऊ या शायद क्राकाउ के चिड़ियाघर में
घूमते हुए घूमने लगा मेरे दिमाग़ में
पूरी दुनिया का नक़्शा
और आदमी का पूरा इतिहास...
किस समय में हूँ ?
कहाँ से आया हूँ ? किस शहर में हूँ ?

काफ़्का के प्राहा में
22 नम्बर “स्वर्ण-गली” के एक छोटे-से कमरे में ?
या वेनिस की गलियों में ?
या बललीमारान में ?
हैब्सबर्ग्ज़ के भव्य महलों में हूँ ?
या वावेल-दुर्ग में ? या लाल क़िले के दीवाने-ख़ास में ?

वापस लौटा तो देखा
हुमायूँ के मकबरे या शायद कुतुब के परिसर में खड़ी
अभीर खुसरो की एक नयी पहेली
जोड़ रही थी
कलाओं की वंशावली में एक और कड़ी।
 

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