कुँवर नारायण की कविता संग्रह: अपने सामने - इब्नेबतूता

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Apne Saamne - Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: अपने सामने - इब्नेबतूता

इब्नेबतूता
माबर के जंगलों में
सोचता इब्नेबतूता-पैने बांसों की सूलियों में बिंधे
कौन हैं ये जिनके शरीर से रक्त चूता?

दिन में भी इतना अंधेरा
या सुल्तान अन्धा है
जिसकी अन्‍धी आँखों से मैं देख रहा हूँ
मशाल की फीकी रोशनी में छटपटाता
तवारीख का एक पन्‍ना?-
इस बर्बर समारोह में
कौन हैं ये अधमरे बच्चे, औरतें जिनके बेदम शरीरों से
हाथ पाँव एक एक कर अलग किए जा रहे हैं?
काफ़िर? या मनुष्य? कौन हैं ये
मेरे इर्द गिर्द जो
शरियत के खिलाफ़
शराब पिए जा रहे हैं?

कोई नहीं। कुछ नहीं। यह सब
एक गन्दा ख्वाब है
यह सब आज का नहीं
आज से बहुत पहले का इतिहास है
आदिम दरिन्दों का
जिसका मैं साक्षी नहीं...। सुल्तान,
मुझे इजाज़त दो,
मेरी नमाज़ का वक़्त है।
 

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