कुँवर नारायण की कविता संग्रह: तीसरा सप्तक - गुड़िया

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Kunwar-Narayan-kavita

Teesra Saptak : Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: तीसरा सप्तक - गुड़िया

गुड़िया
मेले से लाया हूँ इसको
छोटी सी प्‍यारी गुड़िया,
बेच रही थी इसे भीड़ में
बैठी नुक्‍कड़ पर बुढ़िया

मोल-भव करके लया हूँ
ठोक-बजाकर देख लिया,
आँखें खोल मूँद सकती है
वह कहती पिया-पिया।

जड़ी सितारों से है इसकी
चुनरी लाल रंग वाली,
बड़ी भली हैं इसकी आँखें
मतवाली काली-काली।

ऊपर से है बड़ी सलोनी
अंदर गुदड़ी है तो क्‍या?
ओ गुड़िया तू इस पल मेरे
शिशुमन पर विजयी माया।

रखूँगा मैं तूझे खिलौने की
अपनी अलमारी में,
कागज़ के फूलों की नन्‍हीं
रंगारंग फूलवारी में।

नए-नए कपड़े-गहनों से
तुझको राज़ सजाऊँगा,
खेल-खिलौनों की दुनिया में
तुझको परी बनाऊँगा।

ओ गुड़िया उठ नाच छमा-छम,
तू रानी महरानी है :
गुड्डे दिल को थामे बैठे,
तेरी गज़ब जवानी है :

तेरे रूपरंग पर आधी
दुनियाँ ही दीवानी है :
राज कर रही तू हर दिल पर,
अक्किल पानी-पानी है ।

कपड़ा ला दूँ, ज़ेवर ला दूँ,
बिन्दी ला दूँ, टिकली-
बीच-बज़ार आज तू गुड़िया
मेरे हाथों बिक ली :

तुझे मसख़रा नौकर ला दूँ :
ला दूँ बुद्धू दूल्हा,
तू इतराती घूम और वह
घर पर फूँके चूल्हा :

तू है खेल, खिलाड़ी मैं हूँ,
स्वाँग रचाऊँ ख़ासा :
सब नादान, अनाड़ी सब हैं,
दुनिया बने तमाशा ।
 

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