कुँवर नारायण की कविता संग्रह: कोई दूसरा नहीं - एक संक्षिप्त कालखण्ड में

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Apne Saamne - Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: कोई दूसरा नहीं - एक संक्षिप्त कालखण्ड में

एक संक्षिप्त कालखण्ड में
अगर मुझमें अपनी दुनिया को
बदल सकने की ताक़त होती
तो सब से पहले
उस 'मैं' को बदलने से शुरू करता
जिसमें दुनिया को बदलने की ताक़त होती।
उसे एक पिचका गुब्बारा देता
जिस पर दुनिया का नक़्शा बना होता
और कहता-

इसमें अपनी साँसे भरो,
इसे फुला कर
अपने से करोड़ों गुना बड़ा कर लो,
और फिर अनुभव करो
कि तुम उतना ही उसके अन्दर हो
जितना उसके बाहर

धीरे-धीरे एक असह्य दबाव में
बदलती चली जाएगी
तुम्हारे प्रयत्नों की भूमिका,
किसी अन्य ययार्थ में प्रवेश कर जाने को
बेचैन हो उठेंगी तुम्हारी चिन्ताएँ।

उससे कहता-
एक हिम्मत और करो,
अपनी पूरी ताक़त लगा कर
गुब्बारे को थोड़ा और फुलाओ
....लगभग........फूटने की हद तक.....
अब देखो कि तुम
इस कोशिश में
नष्ट हो जाते हो
एक कर्कश विस्फोट के साथ

या किसी विरल ऊँचाई को
छू पाता है तुम्हारा गुब्बारा

हवा से भी हल्का
और कल्पना की तरह मुक्त
 

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