कुँवर नारायण की कविता संग्रह: कोई दूसरा नहीं - आठवीं मंज़िल पर

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Apne Saamne - Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: कोई दूसरा नहीं - आठवीं मंज़िल पर

आठवीं मंज़िल पर
आठवीं मंज़िल पर
इस छोटे-से फ़्लैट में
दो ऐसी खिड़कियाँ हैं
जो बाहर की ओर खुलतीं।

फ़्लैट में अकेले
इतनी ऊँचाई पर बाहर की ओर खुलनेवाली
खिड़कियों के साथ
लगातार रहना
भयानक है।

मैंने दोनों खिड़कियों पर
मज़बूत जंगले लगवा दिए हैं
यह जानते हुए भी
कि आठवीं मंज़िल पर
बाहर से अन्दर आने का दुस्साहस तो
शायद ही कोई करे

दरअसल मैं बाहर से नहीं
अन्दर से डरता हूँ
कि हालात से घबरा कर
या खुद ही से ऊब कर
किसी दिन मैं ही कहीं
अन्दर से बाहर न कूद जाऊँ।
 

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