कुँवर नारायण की कविता संग्रह: तीसरा सप्तक - दो बत्तख़ें

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Teesra Saptak : Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: तीसरा सप्तक - दो बत्तख़ें

दो बत्तख़ें
दोनों ही बत्तख़ हैं,
दोनों ही मानी हैं,
छोटी-सी तलैया के
राजा और रानी हैं;

गन्दे हों, सौदे हों,
मुझ को मराल हैं,
हीरे के दो टुकड़े,
गुदड़ी के लाल हैं,

कीचड़ में जीवन है
पानी का पानी है,
कहने को पंछी हैं,
उड़न को कहानी हैं;

क्या जाने कहाँ गये
कीड़ों को देख-भाल,
कविता-से सुन्दर थे,
सूना कर गये ताल !
 

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