कुँवर नारायण की कविता संग्रह: इन दिनों - बाज़ारों की तरफ़ भी

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In Dino - Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: इन दिनों - बाज़ारों की तरफ़ भी

बाज़ारों की तरफ़ भी
आजकल अपना ज़्यादा समय
अपने ही साथ बिताता हूँ।

ऐसा नहीं कि उस समय भी
दूसरे नहीं होते मेरे साथ
मेरी यादों में
या मेरी चिन्ताओं में
या मेरे सपनों में

वे आमन्त्रित होते हैं
इसलिए अधिक प्रिय
और अत्यधिक अपने

वे जब तक मैं चाहूँ साथ रहते
और मुझे अनमना देखकर
चुपचाप कहीं और चले जाते।

कभी-कभी टहलते हुए निकल जाता हूँ
बाज़ारों की तरफ़ भी :
नहीं, कुछ खरीदने के लिए नहीं,
सिर्फ़ देखने के लिए कि इन दिनों
क्या बिक रहा है किस दाम
फ़ैशन में क्‍या है आजकल

वैसे सच तो यह है कि मेरे लिए
बाज़ार एक ऐसी जगह है
जहाँ मैंने हमेशा पाया है
एक ऐसा अकेलापन जैसा मुझे
बड़े-बड़े जंगलों में भी नहीं मिला,

और एक खुशी
कुछ-कुछ सुकरात की तरह
कि इतनी ढेर-सी चीज़ें
जिनकी मुझे कोई ज़रूरत नहीं !
 

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