कुँवर नारायण की कविता संग्रह: इन दिनों - अपठनीय

Hindi Kavita

Hindi Kavita
हिंदी कविता

Kunwar-Narayan-kavita

In Dino - Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: इन दिनों - अपठनीय

अपठनीय
घसीट में लिखे गए
जिन्दगी के अन्तिम बयान पर
थरथराते हस्ताक्षर
इतने अस्पष्ट
कि अपठनीय

प्रेम-प्रसंग
बचपन से बुढ़ापे तक
इतने पर्दों की पर्तों में लिपटे
कि अपठनीय

सच्चाई
विज्ञापनों के फुटनोटों में
इतनी बारीक़ और धूर्त भाषा में छपी
कि अपठनीय

सियासती मुआमलों के हवाले
ऐसे मकड़जाले
कि अपठनीय

अख़बार
वही ख़बरें बार-बार
छापों पर इतनी छापें
सबूत की इतनी गलतियाँ
भूल-सुधार इतने संदिग्ध
कि अपठनीय

हर एक के अपने-अपने ईमान धरम
इतने पारदर्शी
कि अपठनीय

जीवन-वस्तु जितनी ही भाषा-चुस्त
उतनी ही तरफ़ों से इतनी एक-तरफ़ा
कि अपठनीय

सुई की नोंक बराबर धरती पर लिखा
भगवद्गीता का पाठ
इतना विराट
कि अपठनीय

और अब
जबकि जाने की हड़बड़ी
आने-जाने के टाइम-टेबिल में ऐसी गड़बड़ी
कि छूटने का वक़्त
और पहुँचने की जगह
दोनों अपठनीय
 

(getButton) #text=(Jane Mane Kavi) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(Hindi Kavita) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(Kunwar Narayan) #icon=(link) #color=(#2339bd)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!