कुँवर नारायण की कविता संग्रह: अपने सामने - बंधा शिकार

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Apne Saamne - Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: अपने सामने - बंधा शिकार

बंधा शिकार
कुछ ठहर-सा गया है मेरे बिल्कुल पास,
मुझे सुँघता हुआ।
किसी भी क्षण
आक्रमण कर सकनेवाली
एक बर्बर ताक़त। वह
क्या चाहता है?

क्या है मेरे पास
उसको देने लायक
जिसे उसकी तरफ फेंककर
अपने को बचा लूं?

वह अपनी खुरदुरी देह को रगड़ता है
मेरी देह से जो अकड़कर वृक्ष हो गई है।
कह कुछ दूर जाकर रुक गया है।
उसे कोई जल्दी नहीं।
वह जानता है कि मैं बंधा हूँ
और वह एक खुला शिकारी है।
 

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