कुँवर नारायण की कविता संग्रह: अपने सामने - जब आदमी-आदमी नहीं रह पाता

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Apne Saamne - Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: अपने सामने - जब आदमी-आदमी नहीं रह पाता

जब आदमी-आदमी नहीं रह पाता
दरअसल मैं वह आदमी नहीं हूँ जिसे आपने
ज़मीन पर छटपटाते हुए देखा था।
आपने मुझे भागते हुए देखा होगा
दर्द से हमदर्द की ओर।
वक़्त बुरा हो तो आदमी आदमी नहीं रह पाता। वह भी
मेरी ही और आपकी तरह आदमी रहा होगा। लेकिन
आपको यक़ीन दिलाता हूँ
वह जो मेरा कोई नहीं था, जिसे आपने भी
अँधेरे में मदद के लिए चिल्ला-चिल्लाकर
दम तोड़ते सुना था।
शायद उसी मुश्किल वक़्त में
जब मैं एक डरे हुए जानवर की तरह
उसे अकेला छोड़कर बच निकला था ख़तरे से सुरक्षा की ओर,
वह एक फंसे हुए जानवर की तरह
खूँख्वार हो गया था।
 

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