कुँवर नारायण की कविता संग्रह: परिवेश : हम-तुम - आमने-सामने

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Parivesh : Hum-Tum - Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: परिवेश : हम-तुम - आमने-सामने

आमने-सामने
पश्चिमी आकाश में बिखरे बादल,
कि सूरज के रंगीन छिलके-
या घायल गुबार
किसी मुरझाये दिल के

नीचे, टहनियों की टोकरी में,
गौंज कर फेंकी हुई एक रद्द शाम :
दबी सिसकियों की तरह चारों ओर
एक घुटता हुआ कूहराम...

मुझे ख़ुशी है
कि तुम आ गए,
मेरी ख़ामोशी से
आख़िर उकता गए!

ज़रा ठहरो, ज़िन्दगी के इन टुकड़ों को
फिर से सँवार लूँ,
और उन सुनहले क्षणों को जो भागे जा रहे हैं
पुकार लूँ...
 

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