अकेला ही सही - सुव्रत शुक्ल | Akela hi Sahi - Suvrat Shukla

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"अकेला ही सही"

चख लिया दुनिया को हमने,
अब अकेला ही सही।
वक्त की होता कठिन ,
हर शख्स मुल्जिम तो नहीं।।

एक जो बदला हुआ और 
एक जो तनहा रहा।
दोनों ही मज़बूत और
 उनका कोई सामी नहीं।।

मैं मुसीबत में अकेला
 हूं तो क्यों हैरत करूं।
डूबती नौका में कोई 
पांव भी धरते नहीं।।

मैंने कब तुमसे कहा यह 
मेरी तुम कीमत करो।
गर मुझे बिकना ही होता, 
यूं सितम सहते नहीं।।

वक्त तू कितना जुल्म कर, 
याद रखना अब मुझे।
मैं बदलकर ही रहूंगा, 
तुझको भी एक दिन कहीं।।

            - सुव्रत शुक्ल

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