माँ भाग 12 - मुनव्वर राना | Maa Part 12 - Munawwar Rana

Hindi Kavita
Munawwar-Rana

माँ भाग 12 -  मुनव्वर राना | Maa Part 12 - Munawwar Rana

इसलिए मैंने बुज़ुर्गों की ज़मीनें छोड़ दीं
मेरा घर जिस दिन बसेगा तेरा घर गिर जाएगा

बचपन में किसी बात पे हम रूठ गये थे
उस दिन से इसी शहर में हैं घर नहीं जाते

बिछड़ के तुझ से तेरी याद भी नहीं आई
हमारे काम ये औलाद भी नहीं आई

मुझको हर हाल में बख़्शेगा उजाला अपना
चाँद रिश्ते में नहीं लगता है मामा अपना

मैं नर्म मिट्टी हूँ तुम रौंद कर गुज़र जाओ
कि मेरे नाज़ तो बस क़ूज़ागर उठाता है

मसायल नें हमें बूढ़ा किया है वक़्त से पहले
घरेलू उलझनें अक्सर जवानी छीन लेती हैं

उछलते—खेलते बचपन में बेटा ढूँढती होगी
तभी तो देख कर पोते को दादी मुस्कुराती है

कुछ खिलौने कभी आँगन में दिखाई देते
काश हम भी किसी बच्चे को मिठाई देते

Jane Mane Kavi (medium-bt) Hindi Kavita (medium-bt) Munawwar Rana(link)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!