माँ भाग 11 - मुनव्वर राना | Maa Part 11 - Munawwar Rana

Hindi Kavita
Munawwar-Rana

माँ भाग 11 - मुनव्वर राना | Maa Part 11 - Munawwar Rana

माँ की ममता घने बादलों की तरह सर पे साया किए साथ चलती रही
एक बच्चा किताबें लिए हाथ में ख़ामुशी से सड़क पार करते हुए

दुख बुज़ुर्गों ने काफ़ी उठाए मगर मेरा बचपन बहुत ही सुहाना रहा
उम्र भर धूप में पेड़ जलते रहे अपनी शाख़ें समरदार करते हुए

चलो माना कि शहनाई मसर्रत की निशानी है
मगर वो शख़्स जिसकी आ के बेटी बैठ जाती है

अभी मौजूद है इस गाँव की मिट्टी में ख़ुद्दारी
अभी बेवा की ग़ैरत से महाजन हार जाता है

मालूम नहीं कैसे ज़रूरत निकल आई
सर खोले हुए घर से शराफ़त निकल आई

इसमें बच्चों की जली लाशों की तस्वीरें हैं
देखना हाथ से अख़बार न गिरने पाये

ओढ़े हुए बदन पे ग़रीबी चले गये
बहनों को रोता छोड़ के भाई चले गये

किसी बूढ़े की लाठी छिन गई है
वो देखो इक जनाज़ा जा रहा है

आँगन की तक़सीम का क़िस्सा
मैं जानूँ या बाबा जानें

हमारी चीखती आँखों ने जलते शहर देखे हैं
बुरे लगते हैं अब क़िस्से हमॆं भाई —बहन वाले


Jane Mane Kavi (medium-bt) Hindi Kavita (medium-bt) Munawwar Rana(link)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!