ज़िंदगी मुझको बता - सुव्रत शुक्ल Jindagi Mujhko Bata - Suvrat Shukla (Kavita on Life)

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Suvrat-Shukla

ज़िंदगी मुझको बता - सुव्रत शुक्ल
Jindagi Mujhko Bata - Suvrat Shukla (Kavita on Life)

दुःख भरे पहले बहुत फिर तू इन्हे क्यों साथ लाती।

ज़िंदगी मुझको बता दे तू मुझे ही क्यों रुलाती।


क्या मेरा तुझसे पुराना 

ऋण अधूरा रह गया था

क्या तेरा नुकसान भारी

मेरे हाथों हो गया था

या तुम्हारा घाव कोई

मै कभी था क्या कुरेदा


फिर हमेशा पास मेरे गम की क्यों बारात लाती।

ज़िंदगी मुझको बता दे तू मुझे ही क्यों रुलाती।


यदि बकाया है तेरा कुछ भी,

बता दे जो मै भर दूं,

प्राण भी चाहे बता दे,

तेरे चरणों में जो धर दूं

थक चुका हूं व्यंग सुन सुन,

अब नहीं क्षमता बची है,


कब जगेगी आस खुशियों की नहीं तू क्यों बताती।

ज़िंदगी मुझको बता दे तू मुझे ही क्यों रुलाती।।


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