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हिंदी कविता
भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय
Bharatendu Harishchandra ka jivan parichay
भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म (९ सितंबर १८५०-७ जनवरी१८८५ ) काशी में हुआ। उनके पिता गोपाल चंद्र एक अच्छे कवि थे और गिरधर दास उपनाम से कविता लिखते थे। भारतेंदु हरिश्चंद्र को आधुनिक हिंदी साहित्य का पितामह कहा जाता है। इनका मूल नाम 'हरिश्चन्द्र' था, 'भारतेन्दु' उनकी उपाधि थी। हिन्दी साहित्य में आधुनिक काल का प्रारम्भ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से माना जाता है। भारतीय नवजागरण के अग्रदूत के रूप में प्रसिद्ध भारतेन्दु जी ने देश की गरीबी, पराधीनता, शासकों के अमानवीय शोषण का चित्रण को ही अपने साहित्य का लक्ष्य बनाया। हिन्दी को राष्ट्र-भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने की दिशा में उन्होंने अपनी प्रतिभा का उपयोग किया। हिन्दी में नाटकों का प्रारम्भ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से माना जाता है।
वह कवि, व्यंग्यकार, नाटककार, पत्रकार. संपादक, गद्यकार, कुशल वक्ता और समाज सेवक थे । उनको अंग्रेजी, संस्कृत, मराठी, बंगला, गुजराती, पंजाबी और उर्दू भाषायों का भी अच्छा ज्ञान था । उन्होंने 'हरिश्चंद्र पत्रिका', 'कविवचन सुधा' और 'बाल विबोधिनी' पत्रिकाओं का संपादन भी किया।
भारतेंदु हरिश्चंद्र की काव्य रचनाएँ हैं:
भक्तसर्वस्व, प्रेममालिका (१८७१), प्रेम माधुरी (१८७५), प्रेम-तरंग (१८७७), उत्तरार्द्ध भक्तमाल (१८७६-७७), प्रेम-प्रलाप (१८७७), होली (१८७९), मधुमुकुल (१८८१), राग-संग्रह (१८८०), वर्षा-विनोद (१८८०), विनय प्रेम पचासा (१८८१), फूलों का गुच्छा (१८८२), प्रेम-फुलवारी (१८८३), प्रेमाश्रु-वर्षण, कृष्णचरित्र (१८८३), दानलीला, तन्मय लीला, नये ज़माने की मुकरी, सुमनांजलि, बन्दर सभा (हास्य व्यंग) और बकरी विलाप (हास्य व्यंग) ।
भारतेंदु हरिश्चंद्र की चुनिंदा रचनाएँ
ग़ज़लें
नये जमाने की मुकरी
प्रेम माधुरी
प्रेममालिका
वर्षा-विनोद
प्रेमाश्रु-वर्षण
प्रेम-फुलवारी
कृष्ण-चरित्र
सवैये/सवैय्ये
प्रसिद्ध रचनाएँ/कविताएँ
अंधेर नगरी चौपट्ट राजा (नाटक)
भारतदुर्दशा (नाटक)
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