कृष्ण-चरित्र-चरित - भारतेंदु हरिश्चंद्र Krishan Charitra Bharatendu Harishchandra

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कृष्ण-चरित्र-चरित भारतेंदु हरिश्चंद्र 
Krishan Charitra Bharatendu Harishchandra

1. हरि हम कौन भरोसे जीएँ - भारतेंदु हरिश्चंद्र

हरि हम कौन भरोसे जीएँ ।
तुमरे रुख फेरे करुनानिधि काल-गुदरिया सीएँ ।।
यों तो सब ही खात उदर भरि अरु सब ही जल पीएँ ।
पैधिक धिक तुम बिन सब माधो वादिहिं सासा लीएँ ।।
नाथ बिना सब व्यर्थ धरम अरु अधरम दोऊ कीएँ ।
'हरीचंद' अब तो हरि बनिहै कर-अवलम्बन दीएँ ।।

Bharatendu-Harishchandra

2. हरि मोरी काहें सुधि बिसराई - भारतेंदु हरिश्चंद्र

हरि मोरी काहें सुधि बिसराई ।
हम तो सब बिधि दीन हीन तुम समरथ गोकुल-राई ।।
मों अपराधन लखन लगे जौ तो कछु नहिं बनि आई ।
हम अपुनी करनी के चूके याहू जनम खुटाई ।।
सब बिधि पतित हीन सब दिन के कहँ लौं कहौं सुनाई ।
'हरीचंद' तेहि भूलि बिरद निज जानि मिलौ अब धाई ।।

3. जयति कृष्ण-पद-पद्य-मकरन्द रंजित - भारतेंदु हरिश्चंद्र

जयति कृष्ण-पद-पद्य-मकरन्द रंजित
नीर नृप भगीरथ बिमल जस-पताके ।
ब्रह्म-द्रवभूत आनन्द मंदाकिनी
अलक नंदे सुकृति कृति-बिपाके ।
शिव-जरा-जूट गह्वर-सघन-वन-मृगी
विधि-कमंडलु-दलित-नीर-रूपे ।

4. प्रात समै प्रीतम प्यारे को - भारतेंदु हरिश्चंद्र

प्रात समै प्रीतम प्यारे को मंगल बिमल नवल जस गाऊँ ।
सुन्दर स्याम सलोनी मूरति भोरहि निरखत नैन सिराऊँ ।।
सेवा करों हरों त्रैविधि-भय तब अपने गृह-कारज जाऊँ ।।
"हरीचंद" मोहन बिनु देखे नैनन की नहिं तपत बुझाऊँ ।।

5. आजु दोउ बैठे मिलि वृंदावन नव निकुंज - भारतेंदु हरिश्चंद्र

आजु दोउ बैठे मिलि वृंदावन नव निकुंज
सीतल बयार सेवें मोदीरे मन मैं ।
उड़त अंचल चल चंचल दुकुल कल
स्वेद फूल की सुगंध छायी उपवन में ।
रस भरे बातें करें हंसि-हंसि अंग भरें
बीरी खात जाता सरसात सखियन में ।
"हरीचन्द' है राधाप्यारी देखि रीझे गिरिधरी
आनंद सों उमगे समात नहिं तन में ।।

6. सखी मनमोहन मेरे मीत - भारतेंदु हरिश्चंद्र

सखी मनमोहन मेरे मीत ।
लोक वेद कुल जानि छाँड़ि हम करी उनहिं सों प्रीति ।।
बिगरी जग के कारण सगरे उलटौ सबही नीत ।
अब तौ हम कबहूं नहिं तजिहैँ पिय की प्रेम प्रतीत ।।
यहै बाहुबल आस यहै इक यहै हमारी रीत ।
'हरीचंद' निधरक बिहरैंगी पिय बल दोउ जग जीत ।।

7. श्याम अभिराम रवि-काम-मोहन सदा - भारतेंदु हरिश्चंद्र

श्याम अभिराम रवि-काम-मोहन सदा
वाम श्री राकि संगलीने ।
कुंज सुख पुंज नित गुंजरत भौंर जहाँ
गुंज-बन-दाम गलमांहिं दीने ।
करत दिन केलि भुज मेलि कुच ठेलि
लखिदास हरिचंद जय जयति कीने ।

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