उलटबाँसी / संझा भाखा निरगुन

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उलटबाँसी / संझा भाखा निरगुन


राजा के जिया डाहें 

राजा के जिया डाहें, सजन के जिया डाहें
ईहे दुलहिनिया बलम के जिया डाहें।

चूल्हिया में चाउर डारें हो हँड़िया में गोंइठी
चूल्हिया के पछवा लगावतड़ी लवना।
ईहे दुलहिनिया ...

अँखियाँ में सेनुर कइली हो, पिठिया पर टिकुली
धइ धई कजरा एँड़िये में पोतें।
ईहे दुलहिनिया ...

सँझवे के सुत्तल भिनहिये के जागें
ठीक दुपहरिया में दियना के बारें।
ईहे दुलहिनिया ...

कहेलें कबीर सुनो रे भइया साधो
हड़िया चलाइ के भसुरू के मारें
ईहे दुलहिनिया ...

मँड़ये के चारन समधी दीन्हा

मँड़ये के चारन समधी दीन्हा, पुत्र व्यहिल माता॥
दुलहिन लीप चौक बैठारी। निर्भय पद परकासा॥
भाते उलटि बरातिहिं खायो, भली बनी कुशलाता।
पाणिग्रहण भयो भौ मुँडन, सुषमनि सुरति समानी,
कहहिं कबीर सुनो हो सन्तो, बूझो पण्डित ज्ञानी॥

देखि-देखि जिय अचरज होई 

देखि-देखि जिय अचरज होई यह पद बूझें बिरला कोई॥
धरती उलटि अकासै जाय, चिउंटी के मुख हस्ति समाय।
बिना पवन सो पर्वत उड़े, जीव जन्तु सब वृक्षा चढ़े।
सूखे सरवर उठे हिलोरा, बिनु जल चकवा करत किलोरा।
बैठा पण्डित पढ़े कुरान, बिन देखे का करत बखान।
कहहि कबीर यह पद को जान, सोई सन्त सदा परबान॥

एकै कुँवा पंच पनिहार 

एकै कुँवा पंच पनिहारी। एकै लेजु भरै नो नारी॥
फटि गया कुँआ विनसि गई बारी। विलग गई पाँचों पनिहारी॥

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