दिकुप्रेम - प्रेम ठक्कर | Prabhu Shree Ram - Prem Thakker

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"प्रभु श्री राम"

हे प्रभु श्री राम
अब तो मान जाओ ना 
मुझे अपनी दिकु वापस लौटाओ ना

एक-दूजे से कोसो दूर रहकर
जीवन में कभी ना मिल पाने की स्थिति से स्वीकृत होकर
हम दोनों ने प्रामाणिक प्रेम किया था
इस में गलती कहां हुई, यह बताओ ना 
हे प्रभु श्री राम, मुझे अपनी दिकु वापस लौटाओ ना

उनकी यादों से यह मन रात भर नहीं सोता है
दिकु प्रेम के खुशनुमा पलों को याद कर यह हरपाल रोता है 
आखिर आप भी तो जानते है
वास्तविक प्रेम से दूरी का वियोग नींद चैन सब खोता है
मेरे इस व्याकुल मन को शांत कराओ ना 
हे प्रभु श्री राम, मुझे अपनी दिकु वापस लौटाओ ना

में यह समझता हूँ की उनकी मजबूरियों के कारण उनको जाना पड़ा
मानता हूँ की परिस्थितियों के कारण उन्हें अपना प्राथमिक रिश्ता निभाना पड़ा
पर वह खुश है अपने जीवन में, एकबार यह तसल्ली कराओ ना
हे प्रभु श्री राम, मुझे अपनी दिकु वापिस लौटाओ ना

आज पूरे विश्व में आपके आगमन की आतुरता का उजास है
आपके घर लौटते ही सबके जीवन में मंगल होगा, यह पूरे विश्व को विश्वास है 
पर इन सब के बिच आप का यह नटखट नंदलाला बहुत ही उदास है
उसे भी अपनी राधा के दर्शन कराओ ना
हे प्रभु श्री राम, मुझे अपनी दिकु वापस लौटाओ ना

टूट चुका हूँ और बिखर कर चूर हो चुका हूँ में
में सीधा उनके पास जा सकता हूँ
पर उनकी सुरक्षा के चलते मजबूर हो चूका हूँ में
बस करो प्रभु, मुझे अब और ना सताओ ना
हे प्रभु श्री राम, मुझे मेरी दिकु वापस लौटाओ ना
हे प्रभु श्री राम, मुझे मेरी दिकु वापस लौटाओ ना

*प्रेम का इंतज़ार अपनी दिकु के लिए*

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