कुँवर नारायण की कविता संग्रह: वाजश्रवा के बहाने - पिता से गले मिलते

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Vaajshrava Ke Bahane - Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: वाजश्रवा के बहाने - पिता से गले मिलते

पिता से गले मिलते
पिता से गले मिलते
आश्वस्त होता नचिकेता कि
उनका संसार अभी जीवित है।

उसे अच्छे लगते वे घर
जिनमें एक आंगन हो
वे दीवारें अच्छी लगतीं
जिन पर गुदे हों
किसी बच्चे की तुतलाते हस्ताक्षर,
यह अनुभूति अच्छी लगती
कि मां केवल एक शब्द नहीं,
एक सम्पूर्ण भाषा है,

अच्छा लगता
बार-बार कहीं दूर से लौटना
अपनों के पास,

उसकी इच्छा होती
कि यात्राओं के लिए
असंख्य जगहें और अनन्त समय हो
और लौटने के लिए
हर समय हर जगह अपना एक घर

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