कुँवर नारायण की कविता संग्रह: आत्मजयी - वाजश्रवा

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Aatamjayi - Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: आत्मजयी - वाजश्रवा

वाजश्रवा
अत्र उसन्ह वै वाजश्रवसः सर्ववेदसं ददौ।
तस्य ह नचिकेता नाम पुत्र आस।

पिता, तुम भविष्य के अधिकारी नहीं,
क्योंकि तुम ‘अपने’ हित के आगे नहीं सोच पा रहे,
न अपने ‘हित’ को ही अपने सुख के आगे।
तुम वर्तमान को संज्ञा देते हो, पर महत्त्व नहीं।
तुम्हारे पास जो है, उसे ही बार-बार पाते हो
और सिद्ध नहीं कर पाते कि उसने
तुम्हें सन्तुष्ट किया।
इसीलिए तुम्हारी देन से तुम्हारी ही तरह
फिर पानेवाला तृप्त नहीं होता,
तुम्हारे पास जो है, उससे और अधिक चाहता है,
विश्वास नहीं करता कि तुम इतना ही दे सकते हो।

पिता, तुम भविष्य के अधिकारी नहीं, क्योंकि
तुम्हारा वर्तमान जिस दिशा में मुड़ता है
वहां कहीं एक भयानक शत्रु है जो तुम्हें मार कर
तुम्हारे संचयों को मार्ग में ही लूट लेता है,
और तुम खाली हाथ लौट आते हो।

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