कुँवर नारायण की कविता संग्रह: परिवेश : हम-तुम - विदा

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Parivesh : Hum-Tum - Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: परिवेश : हम-तुम - विदा

विदा
दो समानान्तर पटरियाँ
जो कभी भी मिल न सकतीं।
उस नियम की श्रृंखला में बद्ध
जिसमें हिल न सकती।
ज्यामितिक
दो सरल रेखाएँ समय-विस्तार की
जो दिल न रखतीं!

एक हाहाकार-सी
(कब से प्रतीक्षित !)
वार्तमानिक ट्रेन का आना
ठहरना
और नस नस में समा जाना।

बोलते-से
तोतले भीगे नयन
गाढ़ी व्यथा की चुप्पियों के बीच,
बारम्बार
जैसे ढूँढ़ कर अपनत्व-कोई दर्द-
अपनों को लगा लेते गले से
खींच।

जोड़े हाथ, घायल प्रार्थना में :
टूट कर मैं-
फूल मालाओं सहित गति को समर्पित।
ताश के खेले हुए पत्तों सरीखे
याद में फिंटते हुए-से
कुछ विदित चेहरे।
उमड़ती भावनाओं में बहे जाते
किनारे के हज़ारों दृश्य....
 

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