कुँवर नारायण की कविता संग्रह: परिवेश : हम-तुम - तुम्हें पाने की अदम्य आकांक्षा

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Parivesh : Hum-Tum - Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: परिवेश : हम-तुम - तुम्हें पाने की अदम्य आकांक्षा

तुम्हें पाने की अदम्य आकांक्षा
तुम्हें पाने की अदम्य आकांक्षा
देह की बन्दी है।
तुम्हें देह तक लाने की इच्छा तो
शव-सी गन्दी है।

तुम्हारे रूप की समृद्धि के प्रहरी
अकिंचन शब्द, केवल दास हैं :
एक पराई सम्पत्ति की तिजोरी के
सिर्फ आसपास हैं।

अ-व्यक्ति प्यार के सन्तोष तक उठ सकें,
चाहों में शक्ति कहाँ?-
तुमको हर चेहरे के सुख-दुख में देख सकें,
ऐसी अनुरक्ति कहाँ?

---
ये सितारे तुम्हारी दूरी को दुहराते हैं,
मन को आकाश-सा सूना कर जाते हैं।
तुम्हारा मौन जैसे नदी के उस ओर का अँधियार,
कहने के लिए उस पार-सहने के लिए इस पार!

एक दृष्टि है जिसकी उदासी से
चीज़-चीज़ बचती है,
जिसके सम्पर्क से सपनों-सी छुईमुई
दुनिया सकुचती है।

इन चिथड़ा खंडहरों की विपन्न शामों में
कोई चिल्लाता है-
जिसका स्वर सदियों की
दूरी से आता है।

लगता है,
यह सब भूल जाना है :
एक कहानी-
जो सुलाने का बहाना है।

तुम और तुम्हारा प्यार, एक तमाशा
जो मेरे बाद न होगा।
और ज़िन्दगी, एक टूटा हुआ ख़्वाब
जो हमें याद न होगा।
 

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