कुँवर नारायण की कविता संग्रह: चक्रव्यूह - सवेरा

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Chakravyuh : Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: चक्रव्यूह - सवेरा

सवेरा
करोड़ों आँख वाली रात पर,
दानव सरीखी रात पर,
ताज़ा सवेरा :

पूर्व में आलोक...
पहला पाँव...
थोड़ा कांप कर :

रात चौंकी इस तरह
ज्यों छिप रही हो
कहीं कोई पुण्य-नाशक पाप कर :

ज्योति के पंजे ठहरते रात पर पैने,
घेरे कर तम को उतरते आग के डैने,
चमकता सोनपंखी गरुड़ काले साँप पर :

वन्दना के स्वर उभरते,
हर्ष से पक्षी चहकते,
एक बावन किरन बढ़ कर छा गई आक्षितिज,
तीनों लोक पग से नाप कर :

कई यादों सताई बात पर,
अब तक अखरती बात पर,
ताज़ा सवेरा।
 

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