कुँवर नारायण की कविता संग्रह: इन दिनों - पानी की प्यास

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In Dino - Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: इन दिनों - पानी की प्यास

पानी की प्यास
धरती में प्रवेश करती
पानी की प्यास
पाना चाहती जिस गहराई को
वह पहुँच से दूर थी,

वहाँ से फिर ऊपर उठ कर
आकाश हो जाने की सम्भावना
अभी ओझल थी।

कई तहों को पार करती
एक पारदर्शी तरलता को
मिट्टी के रन्ध्र
धीरे धीरे सोख रहे थे।

देवदार की जड़ों से
अभी और बहुत नीचे तक जाना था पानी को
कि सहता खिंच कर
उसकी जड़ों में समा गया वह
और तेजी से ऊपर उठने लगा :

जिस शिखर तक पहुँचा
वह बेशक बादलों को छू रहा था
पर था वह अब भी
एक वृक्ष का ही शरीर-
वही मरमर
वही हवा में सांस लेने का स्वर
चिड़ियों का घर
वही बसन्त, वही वर्षा वही पतझर...

नहीं-उसने सोचा-फिर नहीं लोटना है उसे
धूल में
झरते फूल पत्तों के संग!

उसने एक लम्बी सांस ली हवा में
और बादलों के साथ हो लिया।
अद्भुत था पृथ्वी का दृश्य
उस ऊँचाई से
अपनी ओर खींचता
उसका प्रबल आकर्षण,
उसकी सोंधी उसांस...

वही था इस रोमांच का
सब से नाजुक क्षण-
उत्कर्ष के चरम बिन्दु पर थरथराती
एक बूँद की अदम्य अभिलाषा
कि लुढ़क कर बादलों से
चूम ले अपनी मिट्टी को फिर एक बार
भर कर अपने प्रगाढ़ आलिंगन में!
 

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