कुँवर नारायण की कविता संग्रह: इन दिनों - नींव के पत्थर

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In Dino - Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: इन दिनों - नींव के पत्थर

नींव के पत्थर
कभी-कभी विद्रोह करते हैं पत्थर
और फूटने लगते हमारे सिर

वे चीख़ते-मुक्त करो हमें
अपने खोलले प्रतीकों से,
अपनी कीर्ति के अरमानों से,
अपने मन्दिरों-मस्जिदों और गुरुद्वारों से

तुम्हारी सदियों पुरानी स्थापनाएँ
बिल्कुल निष्प्राण
उनकी बुनियाद से हिलना चाहते
हम पाषाण

उनकी जड़ों से खुलकर
चिड़ियों की तरह उड़ना चाहते
खुले आकाश में,
घिरना चाहते जैसे कपूरी बादल
और रखना चाहते पृथ्वी की हथेली पर
अपना माथा जैसे वर्षा का आशीर्वाद।

हम चाहते कि अंधेरी तहों से निकल कर
आँधियों की तरह साँस लें एक बार
और लौट जाएँ बर्फ से ढंकी
अपनी पर्वतीय ऊँचाइयों पर
रेत बनकर बहें
सागर की ओर झपटती नदियों में,
जीवन बनकर चमकें
प्रकृति की हरियाली में

आपस में जुड़े
जब खुलकर झगड़ते हैं नींव के पत्थर
लड़खड़ाकर ढहने लगते
हमारे ही ऊपर
हमारी सभ्यताओं के शिखर।
 

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