कुँवर नारायण की कविता संग्रह: इन दिनों - नदी के किनारे

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In Dino - Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: इन दिनों - नदी के किनारे

नदी के किनारे
हाथ मिलाते ही
झुलस गई थीं उँगलियाँ
मैंने पूछा, “कौन हो तुम ?”
उसने लिपटते हुए कहा, “आग !”

मैंने साहस किया-
खेलूँगा आग से

धूप में जगमगाती हैं चीज़ें
धूप में सबसे कम दिखती है
चिराग़ की लौ।

कभी-कभी डर जाता हूँ
अपनी ही आग से
जैसे डर बाहर नहीं
अपने ही अन्दर हो।

आग में पकती रोटियाँ
आग में पकते मिट्टी के खिलौने।

आग का वादा-फिर मिलेंगे
नदी के किनारे।

हर शाम
इन्तजार करती है आग
नदी के किनारे।
 

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