कुँवर नारायण की कविता संग्रह: कोई दूसरा नहीं - मालती

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Apne Saamne - Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: कोई दूसरा नहीं - मालती

मालती
कितनी ढिठाई से बढ़ती
और कैसा ठठा कर खिलती है मालती

वह एक भीनी-सी खुशबू की कड़ी कार्रवाई है
पछुवां के निर्मम थपेड़ों के खिलाफ
घर की पच्छिम की दीवार को यत्न से घेरे
एक अल्हड़ खिलखिलाहट है मालती

आज अचानक क्‍या हो गया तुझे?
क्या तेरा बच्चा बीमार है?
क्यों इस तरह सिर झुकाये
गुमसुम खड़ी है मालती?

माली कहता-
राकस होती है मालती की बेल
मर मर कर जी उठनेवाली
देसी हिम्मत है मालती
कैसे ही उसे काटो छाँटो
कभी नहीं सूखती है जड़ों से मालती

किसी और ने नहीं

नहीं, किसी और ने नहीं।
मैंने ही तोड़ दिया है कभी कभी
अपने को झूठे वादे की तरह
यह जानते हुए भी कि बार बार
लौटना है मुझे
प्रेम की तरफ
विश्वास बनाये रखना है
मनुष्य में
सिद्ध करते रहना है
कि मैं टूटा नहीं

चाहे कविता बराबर ही
जुड़े रहना है किसी तरह
सबसे।
 

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