कुँवर नारायण की कविता संग्रह: कोई दूसरा नहीं - महाभारत

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Apne Saamne - Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: कोई दूसरा नहीं - महाभारत

महाभारत
धृतराष्ट्र अन्धे।
विदुर-नीति हुई फेल।

धर्मराज धूर्तराज दोनों जुआड़ी :
पांसे खनखनाते हुए
राजनीति में शकुनी का प्रवेश।

न धर्मक्षेत्रे न कुरुक्षेत्रे।
सीधे सीधे चुनाव क्षेत्रे-
जीत की प्रबल इच्छा से
इकट्ठा हुए महारथियों के
ढपोरशंखी नाद से
युद्ध का श्रीगणेश।

दलों के दलदल में जूझ रहे
आठ धर्म अट्ठारह भाषाएँ अट्ठाईस प्रदेश...

पर ओर रथ पर
शान्त भाव से गीता पकड़े
श्रीकृष्ण,
दूसरी ओर एक हाथ से गाण्डीव
और दूसरे से अपना सिर पकड़े गुडाकेश,
देख रहे
भारत से महा भारत होता हुआ एक देश।
 

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