कुँवर नारायण की कविता संग्रह: चक्रव्यूह - मूल्य

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Chakravyuh : Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: चक्रव्यूह - ओस-नहाई रात

मूल्य
संचय कर लेने दो वस्तु सार,
कहीं परिचय है मूल्यों से, परख कहीं;
भाव की परिवर्तिनी भाषा
मुझे अपने असल से आंक लेने दो यहीं :

ओ विक्रेता, वस्तुएँ सब बिकती हैं,
कभी अनमोल, कभी बिना मोल,
मूल्य चढ़ते हैं गिरते हैं, चीज़ मिट्टी है,
अवसर हर भार को देता है स्वयं तोल :

मैं द्रव्य हूँ : मौत की मुहर मुझ पर,
जीवन में चलता हूँ,
घिस जाने तक, खो जाने तक,
एक आन रखता हूँ

एक कसौटी है मुझमें
और एक पदार्थ है मेरे पास,
मैं वह संघर्ष हूँ जिसमें अभिनीत
दो मौलिक विकास।

जीवन में यथार्थ नहीं
दृष्टि भर मिलती है,
खरीदार सच्चा हो :
सृष्टि बेचारी तो सभी दाम बिकती है
 

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