कुँवर नारायण की कविता संग्रह: परिवेश : हम-तुम - एक स्थापना

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Parivesh : Hum-Tum - Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: परिवेश : हम-तुम - एक स्थापना

एक स्थापना
आज नहीं,
अपने वर्षों बाद शायद पा सकूँ
वह विशेष संवेदना जिसमें उचित हूँ।
मुझे सोचता हुआ कोई इनसान,
मुझे प्यार करती हुई कोई स्त्री,
जब मुझे समझेंगे-ताना नहीं देंगे;
जब मैं उन्हें नहीं-वे मुझे पाएँगे,
तब मुझे जीवन मिलेगा...
तब तक अपरिचित हूँ।

जब मैं नहीं
यह सब जो लिख रहा हुं-
होगा-साक्षी-
कि मैंने जीने का प्रयत्न किया,
अजीब लोगों के बीच
जो मुझे अजीब समझते रहे,
लांछित और अपमानित लोग
जो मुझे ग़रीब समझते रहे
मैंने अनष्ट रखा-
अपने को पाया, सिद्ध किया और दे गया।
जब मैं नहीं
मेरी ओर से कोई स्थापित करेगा मेरे वर्षों बाद
कि आज भी कहीं जीवन था-
क्योंकि केवल पहियों और पंखों वाली इस बे-सिर-पैर की सभ्यता में
दफ़्तरों, दुकानों और कारखानों से अस्वीकृत होकर भी
मैंने जीना पसन्द किया!
 

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