कुँवर नारायण की कविता संग्रह: चक्रव्यूह - सागर के किनारे

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Kunwar-Narayan-kavita

Chakravyuh : Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: चक्रव्यूह - सागर के किनारे

सागर के किनारे
इस रात सागर के किनारे
हम इसी विश्वास से चल रहे हैं
कि वहाँ
चाँदनी में विहार करती
जल-परियों को देखेंगे :

उस भुरभुरी बालू पर
जहाँ लहरों की तरलता नाच चुकी होगी
हम बैठेंगे
गुमसुम
चुपचाप
उसी सुकुमार दृश्य से घुले-मिले :
और तभी सागर की रहस्य-क्रोड़ से निकलेगी
नीली रूपहली परियों की झिलमिलाती माया,
विलासी रंगरलियाँ,
उनकी दिव्य कसनाओं का अशरीर सम्भोग,
जिन्हें हम आज देखेंगे,
और जिस सौंदर्य-समर्पण की एक निष्काम स्मृति-जगमगाहट
एक मीठा स्वप्न बोझ ही रह जाएगी...
कल
इनके मन पर
जब ये मिचमिचाती लहरें चकित-सी जागेंगी...
जब इनके गुलाबी चेहरों की चटखती ताज़गी में
मुस्कराएँगी छिपी प्रेम-लीलाएँ :
और जिसका राज़
केवल हम तुम जानेंगे।
 

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