कुँवर नारायण की कविता संग्रह: परिवेश : हम-तुम - बसंत आ...

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Parivesh : Hum-Tum - Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: परिवेश : हम-तुम - बसंत आ...

बसंत आ...
फूलों के चेहरे और तथाकथित चेहरे :
दौड़ कर किसी ने बांह गर्दन में डाल दी...
छू गया बसंत की बयार का महक-दुकूल।

ये मकान भी अजीब आदमी!
बने-ठने
तने-तने
न फूल हैं न पत्तियाँ :
बेज़बान मूंह असंख्य
खिड़कियाँ खुली हुई पुकारतीं-
"बस अंत आ बस अंत आ!!'

धूल उड़ रही उधर
जिधर तमाम भीड़ से लदी-फंदी सवारियाँ
गुज़र रहीं,
उधर नहीं...
तू उसी प्रसूनयुत छबीलकुंज मार्ग से
बसंत आ।

समीप से सु्गंधि-रथ गुज़र गए :
मन उचाट इस तरह
कि हम अतिथि शुभागमन भुला गए!
यह बहार
एक ज्वार फूल फिर उलीच कर चली गई,
कोकिला-कंठ से पुकारती
'बसंत--
आ गया।
बसंत आ गया :
बसंत आ,
गया...!
 

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