विविध - माँ भाग 29 - मुनव्वर राना | Vividh - Maa Part 29 - Munawwar Rana

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विविध - माँ भाग 29 - मुनव्वर राना | Vividh - Maa Part 29 - Munawwar Rana

तुम्हारी आँखों की तौहीन है ज़रा सोचो

तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है


किसी दुख का किसी चेहरे से अंदाज़ा नहीं होता

शजर तो देखने में सब हरे मालूम होते हैं


ज़रूरत से अना का भारी पत्थर टूट जात है

मगर फिर आदमी भी अंदर—अंदर टूट जाता है


मोहब्बत एक ऐसा खेल है जिसमें मेरे भाई

हमेशा जीतने वाले परेशानी में रहते हैं


फिर कबूतर की वफ़ादारी पे शल मत करना

वह तो घर को इसी मीनार से पहचानता है


अना की मोहनी सूरत बिगाड़ देती है

बड़े—बड़ों को ज़रूरत बिगाड़ देती है


बनाकर घौंसला रहता था इक जोड़ा कबूतर का

अगर आँधी नहीं आती तो ये मीनार बच जाता


उन घरों में जहाँ मिट्टी के घड़े रहते हैं

क़द में छोटे हों मगर लोग बड़े रहते हैं


प्यास की शिद्दत से मुँह खोले परिंदा गिर पड़ा

सीढ़ियों पर हाँफ़ते अख़बार वाले की तरह

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