वह - माँ भाग 27 - मुनव्वर राना | Vah - Maa Part 27 - Munawwar Rana

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वह - माँ भाग 27 - मुनव्वर राना | Vah - Maa Part 27 - Munawwar Rana

उसे जली हुई लाशें नज़र नहीं आतीं

मगर वो सूई से धागा गुज़ार देता है


वो पहरों बैठ कर तोते से बातें करता रहता है

चलो अच्छा है अब नज़रें बदलना सीख जायेगा


उसे हालात ने रोका मुझे मेरे मसाएल ने

वफ़ा की राह में दुश्वारियाँ दोनों तरफ़ से हैं


तुझसे बिछड़ा तो पसंद आ गई बेतरतीबी

इससे पहले मेरा कमरा भी ग़ज़ल जैसा था


कहाँ की हिजरतें, कैसा सफ़र, कैसा जुदा होना

किसी की चाह पैरों में दुपट्टा डाल देती है


ग़ज़ल वो सिन्फ़—ए—नाज़ुक़ है जिसे अपनी रफ़ाक़त से

वो महबूबा बना लेता है मैं बेटी बनाता हूँ


वो एक गुड़िया जो मेले में कल दुकान पे थी

दिनों की बात है पहले मेरे मकान पे थी


लड़कपन में किए वादे की क़ीमत कुछ नहीं होती

अँगूठी हाथ में रहती है मंगनी टूट जाती है


वि जिसके वास्ते परदेस जा रहा हूँ मैं

बिछड़ते वक़्त उसी की तरफ़ नहीं देखा.

Jane Mane Kavi (medium-bt) Hindi Kavita (medium-bt) Munawwar Rana(link)

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