भाई - माँ भाग 21 - मुनव्वर राना | Bhai - Maa Part 21 - Munawwar Rana

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भाई - माँ भाग 21 - मुनव्वर राना | Bhai - Maa Part 21 - Munawwar Rana


मैं इतनी बेबसी में क़ैद—ए—दुश्मन में नहीं मरता

अगर मेरा भी इक भाई लड़कपन में नहीं मरता


काँटों से बच गया था मगर फूल चुभ गया

मेरे बदन में भाई का त्रिशूल चुभ गया


ऐ ख़ुदा थोड़ी करम फ़रमाई होना चाहिए

इतनी बहनें हैं तो फिर इक भाई होना चाहिए


बाप की दौलत से यूँ दोनों ने हिस्सा ले लिया

भाई ने दस्तार ले ली मैंने जूता ले लिया


निहत्था देख कर मुझको लड़ाई करता है

जो काम उसने किया है वो भाई करता है


यही था घर जहाँ मिलजुल के सब इक साथ रहते थे

यही है घर अलग भाई की अफ़्तारी निकलती है


वह अपने घर में रौशन सारी शमएँ गिनता रहता है

अकेला भाई ख़ामोशी से बहनें गिनता रहता है


मैं अपने भाइयों के साथ जब बाहर निकलता हूँ

मुझे यूसुफ़ के जानी दुश्मनों की याद आती है


मेरे भाई वहाँ पानी से रोज़ा खोलते होंगे

हटा लो सामने से मुझसे अफ़्तारी नहीं होगी


जहाँ पर गिन के रोटी भाइयों को भाई देते हों

सभी चीज़ें वहाँ देखीं मगर बरकत नहीं देखी

  Jane Mane Kavi (medium-bt) Hindi Kavita (medium-bt) Munawwar Rana(link)

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