Hindi Kavita
हिंदी कविता
गुलदस्ता भाग 1 (भाग २)
Guldasta Part 1 (Part 2)
चेतना
चल रहा हूँ
चलते-चलते कुछ याद आ रहा है।
शायद मेरे कोई आगे-आगे
कुछ दाहिने बायें भी
मेरे साथ चल रहे
यात्रा जो जीवन की
अब तक बहुत कुछ
चलते-चलते कटी है
पर अब रूपाल आया
जो पहले चले थे
वह भी अब शायद कुछ
यादे दिला रहे।
बुद्ध भी चले थे किसी पगडंडी पर
ईसा भी चले थे किसी रास्ते पर
गांधी भी चले जिधर कुछ लोग हो लिये।
नानक ने भी चलकर कुछ कर दिखाया था
शायद ये सब पग दिया और रास्ते
मिलकर बने एक ही रस्ते
चौडा, मजबूत और खूबसूरत भी
परख कर ली है मैंने,
शायद उनका ही संदेश
मुझे अब सही दिशा में
ले जाने को, मंजिल तक पहुँचाने को
मेरे हो कानों में गूज जो उठी थी
अभी-अभी
एक चेतना जगाकर किधर को चली गई।
बटा हुआ दिल
तेरा मेरा का झगड़ा
और
लूट मार के दम्भ भरे,
इन्सानी रिस्ते तोड़ रहे हैं
क्षण-क्षण इन्सानों के बुनियादी रिस्ते
बांट रहे हैं दिनों दिन
सुबह शाम ये दिल के टूटे हिस्से ।
रह पायेगा क्या कोई इन्सानी रिस्ता?
होंगे जब हर तरफ बंटे हुए दिल के रिस्ते ।
बटा हुआ यह दिल अपना
हमको कब तक भरमायेगा
तेरा मेरा सब कुछ जो है
सब यहां पड़ा रह जायेगा।
माटी के हम पूतले हैं
मिट्टी में मिलना है हमको।
हम प्रेम-राग अब गायेगे
हर दिल में जगह बनायेंगे।
गुलशन में खिले फूल सदृश,
हर दिल में खिलायेंगे।
महकेंगे फूलों सी सुगन्ध
और प्रेम तराने गायेंगे ।
भारत मां के बच्चे हैं
भारत की लाज बचायेंगे ।
रंग लायेगी कभी तो
जिन्दगी के मोड़ वह मैं ढूढता हू
प्रेम की गलियां जहां विस्तार वाली
फूल खिलते नित नए हों
और फूल हों प्यार के गंध वाली
मैं भंवरा बन वहां चक्कर लगाना चाहता हूँ
आप भी आयें उस गली में प्यार वाली
मकरंदों से सजी सेजें वहाँ तुमको मिलेंगी ।
जिन्दगी के हर रंग का दीदार होगा
वक्त के हर क्षण कटगे रंगमय ।
फिर वही रंग ले मैं उंडगा
हर गली हर मोड़ पर बिखेरा करूंगा
प्रेम रंगों में सना बह बीज अपना
रंग लायेगी कभी तो ... सोचता हूँ
आप भी सहयोग देंगे .... जानता है ।
ज्वाला बनी क्यों आज
उड़ चला पंछी 'अकेला'
मजिल ढूढने किस ओर
हर गली हर कूचे में भरी
टूटे, अयूरे बटे दिलों के बीच
गुजरते कारवां की श्रृंखला
प्रेम के धागे से पिरो कर
बहुत चाहा बनाना एक माला प्यार की
पर न जाने कौन उसको तोड़ने का
संकल्प कर बैठा।
अदृश्य भेदनशील शस्त्र है यह कौन ?
प्रेम का उत्तर ज्वाला बनी क्यों आज
मानव पी रहा खून मानव का
प्यास उसको अब तक अधूरी
थक गया हूँ मैं, और अब पंख मेरे
नाकाम होते जा रहे हैं।
आंख भी बोझिल हो रहा अब
अधखुली आँखों में
एक आशा की किरण अवशेष जो
चन्द सांसों में उजाला भर रहा हूं।
दास्तां किससे कहूं ?
उड़ चला पछी अकेला
दास्तां किससे कहूँ ?
रास्ते की धुन्ध से, कुछ भूख से व्याकुल कभी
बैठ मन्दिर बुर्ज के उस क्रास पर
जिस पर टंगे थे यीशु, कभी यह सोचकर
अपने बोझिल हृदय का बोझ हल्का कर चला हूँ।
सत्य को खोजने क्यों आज मैं भटका फिरा हूँ ।
शायद छिप गया है
या
छिपाया गया है कहीं।
हो न जाये बेनकाब
जो पहन ली हमारे पहरेदारों ने
आज अगणित फंस चुके जिनके नापाक फंदों में ।
काटना होगा उन्हें अब
आपका सहयोग चाहिये।
सूर्य की तपती निगाहों का यहाँ आक्रोश चाहिये ।
और के समुद्र वीभत्स
ज्वारों से उफनता लहर चाहिये ।
दर्द है गुनाहों को भी
आज दर्द है गुनाहों को भी
उनकी जनसंख्या बढ़ रही।
गुनाह हर सड़क पर तेजी से दौड़ रहे
नसबन्दी के इरादे से
आज आग भी परेश है..
मुझे बार-बार क्यों छेदते हो।
मुझको बहू-बेटियो के जनाने में
क्यों इस्तेमाल करते हो?
पानी भी परेशा है
शास्वत जगत् का मुदु पानी
बोलता है।
अब मुझे भी लोग चौराहे पर बेच रहे
मेरी श्रद्धा को अश्रद्धा में तौल रहे ।
संगीत भी परेशा हैं
बीरता का शौर्य अब सब भूल रहे
दुष्मनों को जगह लोग
दोस्तों को हो जसकी करते रहे ।
मेरा भी कुछ धर्म और ईमान है
इसलिये परेशान हूं, आज के इंसान से
मैं तो बेचाल हूँ ?
इसलिये बेहाल हूँ
मेरी बेबसी का
तुझको ख्याल नहीं !
बगावत की आवाज कोई उठा न दे
इसके पहले अच्छा हो संभल जाओ !
तिरंगे के रंग सा कफन जिसका
ले ले के दर्द-पी पी के दर्द
अमर हो गये कितने
देश के नाम का जो दर्द पीकर
ले तिरंगा जूझे वतन की आन पर
होते रहे बलिदान देश का आन पर
चाहे न हो, अलग से नाम उनका
दिल - दिल में बज जाता है प्यार उनका,
तिरंगे के रंग सा कफन जिसका
लहराये सदा झंकृत गुनगान उनका ।
आंचल भिगोती जा रही
हमने बनाई खूब यह दुनियाँ निराली,
फंस गया मझधार में हूँ सोचता ।
मिल गई है छूट सबको इस कदर,
जुड़ कर फिर न बन जाये फसाना प्यार का;
इन्सानी इन्साफ का तराजू तोड़कर,
वह छिपा स्वर्ण मन्दिर में कभी
कभी शम्भु के मन्दिर पर खड़ा;
कभी मस्जिद की मीनारों पर चढ़ा;
संकल्प कर बैठा है शायद ।
आये हो कहाँ से, जाना है कहाँ ? यह भूल कर,
लगाया आग क्यों अपने मन में ।
तेरी ममतामयी वह जन्मदात्री, खड़ी
आंसू भरे वह आँन में,
अपने आंचल भिगोती जा रही।
(getButton) #text=(Jane Mane Kavi) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(Hindi Kavita) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(Ashok Gaur Akela) #icon=(link) #color=(#2339bd)(getButton) #text=(Next Page of Poem) #icon=(link) #color=(#2339bd)