गुलदस्ता भाग 2 (भाग २) Guldasta Part 2 (Part 2)

Hindi Kavita

गुलदस्ता भाग 2 (भाग २)
Guldasta Part 2 (Part 2)

दोस्ताना हाथ चाहिये

संभल जाओ जरा ओ जागने वालो, 
कहाँ तुम भूल बैठे हो । 
घुस रहा है तुम्हारे सामने ही,
तुम्हारा "देश द्रोही" । 


कर रहा गुमराह अपने बन्धुओं को, 
"एकता" को तोड़ने का है उसका इरादा बड़ा। 
क्या सह सकेंगे हम किसी भी मूल्य पर 
चक्रव्यूहों में उनके फंसे हम जा रहे । 
देश हित में हमें सजग होना चाहिये। 
धर्म कोई भी हो हमें तो, 
दोस्ताना हाथ चाहिये ।

guldasta

करवट बदलना होगा

आंधी और तूफां जो यहां लाया है, 
देश को "एकता" को तोड़ने आया है,
नापाक इस इरादे को, 
हम सबने मिल ललकारा है । 
नहीं चलेगी चाल घुसपैठियों की, 
सबने लोहा माना है । 
पीछे से खंजर क्यों चलाते हो; 
भोले भाले नागरिकों को; 
अपने चगुल में क्यों फंसाते हो। 
बहुत दे चुके मौका अनेकों बार; 
अब नहीं करेंगे हम तुम पर एतबार । 
हर सही रस्ता हमें हृढ़ना होगा ।
उन्नति करने के लिये कटबट बदलना होगा।
आंधी और तूफां हमारा क्या करेंगे, 
उनको भी हमसे सबक लेना पड़ेगा ।

ले तिरंगा हाथ में

साज में झंकार और टंकार हो, 
अंधकार में सुबह का अंजाम हो। 
चौराहे पर खड़ा इन्सान अब कहां जाये, 
जहां हर तरफ, चीखती पुकारे हों ।
देश-द्रोही छिप कहां बैठा है,
नापाक होकर धर्म की छतरी लगाये, 
हमारे आपके धर्मों पर चांद सा धब्बा नगा,
शांति का अब ओढ़ चादर, 
भेड़िया अपने को छिपाना चाहता है।
आंखें अब हमारी पैनी धार वाली, 
भेद कर घुस जायेंगी। 
ले तिरंगा हाथ में, फिर शान से गगन में लहरायेंगी । 

साधना में तुम मेरा सहयोग देना

उड़ चला पंछी "अकेला", 
बीज लेकर प्यार का 
बोने
इस समुन्दर से उस समुन्दर तक,
उड़ सकते हैं रख जितने, 
सोचता हूँ ..
अंकुरित हो जय होगा बड़ा, 
झूम उठेगी धरा का,
पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा,
दिल जुड़ेगे और खिलेंगे फूल मन के । 
महकेगी हर दिशा
होगी भ्रमित ईर्ष्या,
जल मरेगी प्यार के सच्चे इरादों पर । 
देश का हर नागरिक बनेगा देश रक्षक, 
शाति का बन दून फिर नभ में उड़ेगा.
विश्व में फिर शांति का ही राज्य होगा । 
दूध-दधि की ही सदा नदिया बहेगी,
वायु सौरभ युक्त सुरभित होगा यहाँ ।
प्यार ही बस रंग सब बह लायेगा,
उड़ चला हूँ "अकेला",
साधना में तुम मेरा सहयोग देना ।

पसीने की बू आ रही

हमारे कितने वफादार ये पड़ोसो हैं,
अपने सुरक्षा का हथियार 
हमारे घर में छिपा जाते हैं ।
फिर घुसपैठिया बन हमें,
आपस में लड़ाते है । 
आंधियां ही आंधियां 
बवंडर ही बवंडर हर तरफ फैला 
आंखों में अच्छा धूल झोंक जाते हैं ।
खबरदार रहना होगा हमें 
पड़ोसियों की चाल से ! 
पसीने की बू आ रही
इनकी जुबान से !

बाजी खुद की लगा के 

मैं पंछी "अकेला"... 
बहेलिए का जाल ले कैसे उडू गा ।
जिधर भी जाता हूं मामला संगीन है; 
आपही बताये रास्ता गमगीन है।
मिल जाये साथी आप सा अगर,
मिट जायेगा अंधेरा कुछ दूर तलक ।
गिर जाऊं यदि राहु में,
थाम लेना बढ़ के आगे ।
गिरने न देना झण्डा,
बाजी खुद की लगा के ।

जगा देगा वह सूर्य तपता 

चिन्गारी लगायी मैंने पड़ोस में, 
जल गया आज आशियाना हमारा । 
कर रहे दिल के टुकड़े हम 
बहाकर सून अपने चमन में । 
कर रहे हत्या अपने बन्धु-बान्धव के,
जगो! कब तक सोना है तुम्हें । 
जगा देगा वह सूर्य तपता, 
उग रहा आकाश में।
बंटवारा किसका ?
किस-किस का बंटवारा करोगे,
बाग-पानी या हवा का
या दरस्तों पर उगी. 
फूली फली यह जिन्दगी।
आकाश में उड़ते फरिस्ते 
चहचहाते विविध पंछी।
या बांटना है, तुम्हें 'गुनगुनाहट' मस्त भौरों की
न कर पाया कोई अब तक बंटवारा । 
सूर्य और चंदा लुटाते रोशनी जाने युगों से ।

न शोषण कर अधिक 

आह दिल की कब तक टिकेगी,  
जीर्ण जब यह दिल, पुराना हो चुका है। 
कांति का आसार कोई है नहीं 
और तेजी से बढ़े यह भ्रष्ट पथ ।
सह सकेगी क्या घरा इस पाप को ! 
मौन ही क्या वह सदा रह पायेगा। 
एक ही कंपन बने भूकप जब, 
घरासाई और भुगत होंगे वह तब ।
इन गरीबों का न शोषण कर अधिक । 
आह ! न ले अब अधिक, रुक जा जरा, 
देख मुख ज्वाला मुखो सा बन रहा, 
रोकना है रोक लो, बढ़ कर अभी । 
सोचना है यहो, गुमराह हम क्यों हो गये ?
पाँव के नीचे १ड़ी सिट्टी कहे .. 
खोखला क्यों आज करते जा रहे हो ? 
गिर न जायें, सम्हल कर चलना हमें ।
गलतियों को अब न हम दुहरायेगे । 
नफरतों को छोड़ हम, प्रेम को अपनायेगे । 
कहते हैं जिसे हम पद-दलित, 
उनको भी सीने से हम लगायेगे ।

दीप प्यार का हमको जलाने दो ! 

सिलसिला जिन्दगी के खेल का शुरू होता है ! 
मनुष्य पंदा होने का इतिहास शुरू होता है। 
आदम और एव का हाल हम क्या पूछ ? 
अब जीने का सहारा चाहिये नहीं हम को । 
हमको, सबको
उसने जो बनाया है। 
जागरण कर आज कह गया कोई 
दीप प्यार का हमको जलाने दो ।

मैं भी बन गया हूं "अकेला" 

जिन्दगी की रपतार दर-वे-दर बढ़ती जा रही, 
कसमकस दिन-पर-दिन बढ़ती जा रही, 
हवा अब आधी बन रही ऐसे, 
मुहम्बत अब बन रही व्यापार जैसे । 
रफ्तार जिन्दगी की ज्यादा है,
खतरे की घंटी बज रही जैसे । 
रुको ! ठहरो ! मुड़कर देखो जरा, 
साथो-हम साथ बिछुड़ गया देखो ! 
मंजिले - हम सफर देखो 
जाने जा जाने-जिगर देखो
मैं भी बन गया हूँ "अकेला" अन्दर झांक कर देखो । 

गुलदस्ता

एक

रंग बिरंगे फूल खिलाये,  
चुन-चुन बगिया-बगिया। 
महक उठा है कोना-कोना, 
जगो! जागो! पयों सोना । 
देता है संदेश कोई
"गुलदस्ता" यह अपना ! 
एक एकता" और प्रेम में, 
बंध जाये मन अपना ।

दो

आपने "गुलदस्ता" बनाया अनेकों फूल के ।  
हर फूल का रंग बदला क्षण-क्षण यहाँ । 
चुन लिये कुछ रंग के कुछ फूल जो 
रख रहा हूँ आपके बस सामने । 
एक 'गुलदस्ते' से निकाली रंगमय
फूल खिलते हैं भनेकों गंध वाले । 
चुन सकें यदि आप इनसे फूल कोई 
बस यहीं से शौक चुनने का लगेगा ।
मैं "अकेला" ही सही चुन रहा हूँ फूल तेरे 
जन्म-जन्मों से अब भी मेरे 
"गुलदस्ते " अधूरे ।

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!