मुसाफिर प्रेम - प्रेम ठक्कर | Musafir Prem - Prem Thakker

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"मुसाफिर प्रेम"

सुनो दिकु.....
आज खोलकर देखें पुराने मेसेज हमारे
जिन्होंने बीते लम्हों में महफ़िल सजाई थी
जैसे वक्त साथ था हमारे और
कायनात ने भी इजाज़त फरमाई थी
उगते हुए सूरज से लेकर ढलती हुई चांदनी तक
हम दोनों ने एकदूजे के लिए आपस की दुनिया बनाई थी
जीवन के उन हसीन पलों में बहकर
हमने ख़ुशी-ख़ुशी अपनी कश्ती चलाई थी
तुम्हारे जाने के बाद उखड गयी साँसे
बेजान हो गयी वह आखें
जो तूम्हें देखकर हर वक्त मुस्कुराई थी
आज खोलकर देखें पुराने मेसेज हमारे
महसूस हुआ
की वीरान हो गयी ज़िन्दगी
उजड़ गयी वह महफिल
जो कभी शिद्दत से हम ने सजाई थी

*प्रेम का इंतज़ार अपनी दिकु के लिए*

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