आज का सफ़र - अभिषेक मिश्र | Aaj ka safar - Abhishek Mishra

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"आज का सफ़र"

आज का ये सफर था थोड़ा,
वक्त के पास तो जैसे था घोड़ा।
दर-दर भटकने पर मिली मंजिल,
मिलते ही मंजिल खुश हुआ दिल।

बाइक की पिछली सीट जो हरदम थी अकेली,
उस पर थी आज उनकी वो नाजुक हथेली,
घड़ी की सुई सफर का साथ दे रही थी,
हम थे परेशान वो मजे ले रही थी।

अब भी मेरी सांसों में हर दिन,
उनका एहसास  महकता है,
फिर से कहीं उसी तरह से,
दिल उनसे मिलने को तड़पता है।

इस सफर में वो अपने खास थे,
छः सात वर्षों में पहली दफा पास थे,
कालिंदी की लहर,मौसम कुछ सर्द था,
नैनी का पुल, अर्क कुछ जर्द था।

पूछा उन्होंने फिर हाथ का हाल,
जो था ठंड से एकदम सुर्ख लाल,
मैंने कहा लो खुद ही देख लो,
कहकर दिया हाथ हाथों में डाल।

गुजरा वक्त ऐसे बीते दो पहर,
वापस हुए जल्द क्योंकि जाना था घर,
खुशनुमा थी ज़िन्दगी कुछ पल ही साथ रहकर,
बहुत ही खूबसूरत था आज का सफर।।
                        
अभिषेक मिश्र -

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