माँ - अभिषेक मिश्र | Maa - Abhishek Mishra

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"माँ"

सम्पूर्ण व्योम में फैली है जिसकी कीर्ति,
जो है करुणा ममता की पवित्र मूर्ति।

अपने रक्त कणों से सिंचित कर,
जिसने पुष्प रूप आकार दिया।
स्नेहपूर्ण स्पर्श देकर जिसने,
सबको जीवन का आधार दिया।

जिसकी मीठी लोरी में,
स्नेह निर्झर बहता है।
जिसकी अंक में छिपकर,
हर इंसान पलता है।

जिसके आँचल की छाया में,
जिसकी ममतारूपी काया में।
विकसित और पल्लवित होकर,
हम सब आये दुनिया में।

वो है दुनिया की अमूल्य   निधि,
जिसकी गोदी में है सुख का उदधि।
कितनी भी बड़ी समस्या हो,
सुलझाने की जो है विधि।

सर पे हो जो उसका आँचल,
समझो हर जगह वृद्धि है।
उसकी पलकों की छांव मिले,
सबसे बड़ी यही सिद्धि है।

रिश्ते भले अनेकों हो जाये,
कितने भी मित्र हमारे हो जाये।
पर जो ममता है मां के प्यार में,
वैसी नहीं मिलती इस पूरे संसार में।

उसकी आँखों के तारे हम,
उनके राज दुलारे हम।
धूल मिट्टी से सने हुए,
उसकी गोदी में खेले हम।

उसके जैसा स्नेह मिलता कहाँ है?
हर दर्द तकलीफ में वो रहती वहाँ है।
जिसके कदमों में झुकता सारा जहां है,
और कोई नहीं वो बस मेरी माँ है।
                        
अभिषेक मिश्र -

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